तेरा दीदार


पूर्णिमा की रात, होगा बेशक तेरा
दीदार किसी तरह |
मगर निकल गया बेवफा ये आसमां भी तेरी तरह ||

उस रात, रात भर छाई घटायें फलक में चारो ओर |
चाँद दिखा ना तुम दिखे , अमावस्या की तरह ||




शेखर कुमावत

22 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया मुक्तक है ये तो!
    प्रतिदिन कुछ न कुछ लिखते रहो!
    निखार आता जायेगा!

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  2. ना चाँद दिखा ना तुम दिखे , अमावस की तरह ||
    बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  3. सुंदर मुक्तक !!! बेहतरीन लेखन । आपका ब्लॉग सुंदर लगा ।

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  4. बेबफाओ की महफ़िल मैं बेबफा से बफा कर बैठे
    सच्चे आशिक का यही अंजाम होता हैं
    बहुत सुन्दर मुक्तक!
    अंतेमन को छु गया

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  5. सुन्दर मुक्तक के लिए मेरी बधाई.

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  6. शेखर भैया!
    ब्लोग बहुत सुंदर है. कविता में और कसावट लाओ.
    शाबाश! लगे रहो!

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  7. संवेदना को सलाम | आप बहुत छोटे हो , हाँ मेरा शेर टूटे हुए दिलों को जरुर सुनाना , ये भी एक सच है कि जब हम दर्द की परवाह करना छोड़ देते हैं तब गम भी रफूचक्कर हो जाता है |

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  8. मगर निकला बेवफा ये आसमा भी तेरी तरह...

    वाह क्या खूब कहा...सुंदर

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  9. महका गये आपके अल्फाज
    गुनगुनाने को फिर से
    लो शाम गिर आयी

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  10. बहुत कम शब्दों में आप अपनी बात कह देते हैं, अच्छा लगा आप को पढना

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  11. बहुत खूब लिखते हो शेखर जी. लगता है साहित्य आपके संस्कारों में कूट-कूट कर भरा हुआ है. लगभग सभी रचनाएँ बेहतरीन हैं.

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  12. पूर्णिमा की रात, होगा बेशक तेरा दीदार किसी तरह |
    मगर निकला बेवफा ये आसमां भी तेरी तरह ||

    रात भर छाई रही घटायें, फलक में चारो ओर |
    ना चाँद दिखा ना तुम दिखे , अमावस की तरह ||
    Behad dilkash muktak!

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  13. पूर्णिमा की रात, होगा बेशक तेरा दीदार किसी तरह |
    मगर निकला बेवफा ये आसमां भी तेरी तरह ||
    BAHUT SUNDAR!!

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  14. वाह कुमावत जी...चार पंक्तियों में ही बहुत कह दिया.

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  15. Bahut hi nikharti hui abhivyakti se roobaroo hui hoon. Badhayi evam shubhkamnayein

    Devi nangrani

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