मुस्कुराते बहुत है

 लगा के मेहंदी वो इतराते बहुत है

अकेले में वो मुस्कुराते बहुत है


शरमा के वो जब आईना देखते

खुद-ब-खुद वो लज्जाते बहुत है


रह कर भी साजन की बाहों में 

मेरी यादो में खो जाते बहुत है


इससे बड़ी क्या सजा है मेरी

मेरे हिस्से के आंसू बहाते बहुत है


एक अरसे से जुदा है मुझ से

जाने क्यों मेरे दिल में आते बहुत है


 © Shekhar Kumawat 



3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (30-09-2020) को   "गुलो-बुलबुल का हसीं बाग  उजड़ता क्यूं है"  (चर्चा अंक-3840)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
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  2. आप ने बहुत ही सुंदर कविता लिखी है। बहुत- बहुत धन्यवाद sulekh

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