
ना दिखा सकता ये दर्द- ए- दिल किसी को |
ना सुना सकता ये गमे दास्ताँ किसी को ||
है आखरी गुजारिश, ऐ मेरे खुदा तुझसे |
ना चाहूँ जहाँ में इस कदर फिर किसी को ||
:- शेखर कुमावत
स्वतंत्रोपरांत भारत की सातवीं जनगणना 2011 का राष्ट्र् व्यापी बिगुल बज चुका है। प्रथम चरण का कारवां प्रशिक्षण के साथ ही अपनी माकूल रफ्तार से मंजिल की ओर लगातार बढ़ रहा है । जनगणना विभाग द्वारा सामान्य हिन्दी में रचित दोनों पुस्तिकाओं में सभी बिन्दुओं को भली भांति स्पष्ट किया गया है। एक बात को अभिव्यक्त करने के कई तरीके हो सकते हैं जिनमें कविताएं भी काफी एहमियत रखती हैं । कविता रूपी मिठाइयों को यदि सही सलीके से हॅंसी की चासनी से तैयार किया जाय तो उनका स्वाद बेशक लाजवाब हो जाता है । कभी-कभी हॅंसते-हॅंसते , पसीना बहाते हुए मई-जून की धूप में पहाड़ों पर दौड़ते हुए चढ़ जाना भी दिल को बड़ी खुशी और शुगून दे जाता है ,मगर दिल की मायूसी के साथ तो घर की सीढ़ियां उतरने में भी आखिरी सीढी तक खौफ़ बरकरार रहता है । देखा है कई बार हमने हास्य कविताएं ,जब-जब भी अपना रूख मोड़ती है ।आप तो बत्तीसी वाले हैं जनाब , वो तो बिना दांॅत वालों को भी हॅंसा-हॅंसा कर छोड़ती हैं ।ऐसी ही कविताओं में एक बहु चर्चित राजस्थान राज्य के चित्तौड़ शहर निवासी हास्य कवि अमृत ’वाणी’ का नाम भी सम्मान से पुकारा जाता है। आपने ’ भारत की जनगणना 2011 ’ की मकान सूचीकरण एवं एन0पी0आर0 हेतु परिवार अनुसूची भरने के लिए अनुदेश पुस्तिकाओं का मास्टर ट्रेनर के रूप में प्रशिक्षण देने हेतु गहन अध्ययन तो किया ही है , किन्तु साथ-साथ महत्वपूर्ण बिन्दुओं को हास्य कविताओं --कुण्डली काव्य ---द्वारा जो सुस्पष्टता एवं हृदयग्राही रोचकता दी है जो बेशक लाजवाब और काबिले तारीफ है ।