लबो से छुं कर जो पिलाई है हाला |
दिल मे अजीब सी जगी है ज्वाला ||
कैसे बताऊँ की क्या हुवा है मुझे |
जैसे किसी ने पिलाई है मधुशाला ||
:- Shekhar Kumawat
दिल मे अजीब सी जगी है ज्वाला ||
कैसे बताऊँ की क्या हुवा है मुझे |
जैसे किसी ने पिलाई है मधुशाला ||
:- Shekhar Kumawat
lage haro... kabhi na kabhi to majil haath aayegi...
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
वाह वाह!
जवाब देंहटाएंलबों में गजब की खुमारी है।
उतर आई मधुशाला सारी है॥
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंis poem ko poori karke apne blog par dal deta hu . pata nahi kyu mujhse aisa hi hota hai ki hamesha tippani dene lagta hu aur bas emotions ruktte nahi . plz mere blog par bhi padhna agar samay mile to
जवाब देंहटाएंवाह! वाह!
जवाब देंहटाएंवाह! क्या बात है!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंप्रेम-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
sunder...
जवाब देंहटाएंbehatar
जवाब देंहटाएंवाह। गागर में सागर।
जवाब देंहटाएंwah junior bachchan sahab!! wah!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिखा , बस शब्द शब्द बोलता है.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखते हो। शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंWaah, Dil jeet liya aapki rachna ne.....Badhai
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रयास है ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!क्या बात है!
जवाब देंहटाएंवाह वाह .........
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब लिखा है.
अशेष को लगा कि दूसरा कोई छूकर गुज़र गया
जवाब देंहटाएंसच यह था कि 'खुद' ही खुदा होकर उतर गया।