उम्र भर ठोकरे खाई, मझिल तक पहुचने के लिये । ।
जख्म तक होसला देते रहे, रास्तो पे चलने के लिये ॥
में मुस्कुराता रहा, और हालत कुछ यु बदलते रहे ।
मंझिल पे पहुचा तो पता चला कब्र है अब जीने के लिये ॥
Umer Bhar Thokre Khai , Manjhil Tak Pahuchne Ke Liye |
Jhakham Tak Hosla Dete Rahe, Rasto Par Chalne Ke Liye ||
Me Muskurata Raha, Or Halat Kuch Yu Badlte Rahe |
Manjhil Pe Pahucha To Pata Chala, Kabr He Ab Jine Ke Liye ||
मंजिल ख़त्म होने पे सफ़र भी तो ख़त्म हो जाता है ..
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