काव्य वाणी
Shekhar Kumawat's Blog
खुदा की इब्बादत....
अपनी मोहब्बत पर इतना
इल्म
न कर.
खाक-ए-बदन
पे इतना
फक्र
न कर..
इश्क
तो खुदा की
इब्बादत
है यारा.
इसे
ठुकरा
कर उसकी
तौहीन
न कर..
इल्म = ज्ञान, जानकारी
फक्र = गर्व
तौहीन = बेइज़्ज़ती, अपमान
©
Shekhar Kumawat
खुदा से मोहब्बत होगी..
रहेगी सारी बंदिशे
रूह
और
जिस्म
के साथ.
कफ़न
के साथ तो सिर्फ खुदा से
मोहब्बत
होगी..
©
शेखर कुमावत
याद तो आएगी तुझे......
याद तो आएगी तुझे,
हमने
मोहब्बत
जो की है |
पलको पे बिठा कर तेरी
इब्बादत
जो की हैं ||
ओह यारा,
अब हमसे इतनी नफ़रत तो ना कर |
तेरी
जुदाई में
तड़फ के
ये
ज़ह्मत
जो की है ||
ज़ह्मत
= मन की परेशानी, दर्द
©
'शेखर कुमावत'
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