कोई मौत को तरसता

कोई जमी तो कोई आसमां को तरसता |
बेरहम दुनिया में कोई अपनों को तरसता ||

गर इतना आसां होता जीना इस दुनिया में |
फिर क्यूँ कोई बेदर्द मौत को तरसता ||




"
शेखर कुमावत"

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