मुक्तक :-नजरों के तीर


तेरी नजरों के तीर सब जिगर के पार हो गए |
मुसाफिर सारे के सारे ही बीमार हो गए ||

हादसा ये भी हुआ, टूट गए रोजे कई फकीरों के |
खुराफातें तेरी थी, वो मालिक के गुनाहगार हो गए ||

शेखर कुमावत

31 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर शेर भी और चित्र तो कमाल के हैं बधाई।

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  2. बढ़िया मुक्तक हैं!
    मगर सुधार के तलबगार हैं!

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  3. काबिलेतारीफ है प्रस्तुति।.सारी रचनाये आपकी बहुत ही अच्छी है|

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  4. वाह....मालिक की खुराफात और बंदे गुनाहगार....बहुत खूब...

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  5. sangeeta swarup ji waha kuch or he

    jara ek bar or pade

    खुराफातें तेरी थी, वो मालिक के गुनाहगार हो गए

    shekhar kumawat

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  6. very good writing.....
    kaabile- taarif....
    waiting for your next posts...
    i m following you....hope u'll do the same...

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  7. तेरी नजरों के तीर सब जिगर के पार हो गए |
    मुसाफिर सारे के सारे ही बीमार हो गए .....very nice.goooooood.

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  8. प्रिय भाई शेखर ,
    तुम्हारा ब्लॉग देख कर आनंद आगया ,ठीक तुम्हारी तरह सुंदर है ,इतने सजीले चित्र दूंढ निकले हैं कि सौंदर्य के मानक तय कर दिए /आप्बहुत आगे जाइयेगा ये चाहत भी है शुभकामना भी /
    सस्नेह,
    डॉ.भूपेन्द्र

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  9. Bahut badiya likah shekhar bhai aapne very good ,very best

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  10. गज़ब ... जितनी सुन्दर पंक्तियाँ है उतना सुन्दर की चित्र ...

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  11. खुराफातें तेरी थी, वो मालिक के गुनाहगार हो गए ||Bade chunindaa alfaaz hain yah!

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  12. very nice,really impressive & charming.....keep it on....!!!!!!

    with best wishings.....

    http://idharudharki1bat.blogspot.com

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  13. अमां, इस उम्र में ये तेवर?
    छा गये भाई, शेखर।
    बहुत खूब!

    और अगर बुरा न मानो तो प्रोफ़ाईल में थोड़ा सा सुधार कर लो,(replace write by written) उजली चादर पर छोटा सा धब्बा भी चमकता है।
    आशा है बुरा नहीं मानोगे।

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