मुक्तक :- तुमसे पलटा न गया


उठ कर जो गये तुम, हमसे देखा भी न गया |
जाम छलकते रहे , हमसे पिया भी न गया ||

आज भी आवाजें देता हूँ हर रात के अँधेरे में |
खड़ा हो उसी मोड़ पर, जहाँ तुमसे पलटा गया ||

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शेखर कुमावत


19 टिप्‍पणियां:

  1. आज भी आवाजें देता हूँ हर रात के अँधेरे में |
    खड़ा हो उसी मोड़ पर, जहाँ तुमसे पलटा न गया ||


    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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  2. sanjay ji aap ka yahi apar pyar hame likhane ko majbur kar deta he

    aap ki shubh kamnao ka swagat he


    shekhar kumawat

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  3. आज भी आवाजें देता हूँ हर रात के अँधेरे में |
    खड़ा हो उसी मोड़ पर, जहाँ तुमसे पलटा न गया ||
    Bahuthi sundar....kya kahen, dilme ek tees uth gayi..

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  4. आज भी आवाजें देता हूँ हर रात के अँधेरे में |
    खड़ा हो उसी मोड़ पर, जहाँ तुमसे पलटा न गया | ek marmsprshi muktak

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  5. बहुत सुन्दर मुक्तक है जी!
    इसकी चर्चा यहाँ भी है-
    http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_03.html

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  6. आज भी आवाजें देता हूँ हर रात के अँधेरे में |
    खड़ा हो उसी मोड़ पर, जहाँ तुमसे पलटा न गया ||
    waah...........kya baat kah di.........dil ko chhoo gayi........gaagar mein sagar bhar diya.

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  7. बेहतरीन शानदार रचना..उम्मीद है ऐसी ही रचनाएं हमें आगे भी पढ़ने को मिलेगी

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  8. तुम से पलटा न गया--- बहुत खूब।

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  9. उस्ताद जी .. उम्र से ज्यादा गहरी बाते है ...

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  10. mere khayal se aap b.a. ke student honge. blog hindi mein likhen to bhasha ki vertani ko shuddh rakkhen, bhale hi samay thoda jyada lage. sahitya mein ruchi hai to achchhi kitabon ka chayan karen aur use padhen. meri shubhkamnayen.muktakon per mehnat karen. vks185@reiffmail.com

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